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आज है हमारे कारगिल हीरो विक्रम बत्रा का जन्मदिन

 


इस शहीद के बारे में जानकर आपका सीना भी फख्र से चौड़ा हो जाएगा...


स्पेशल डेस्क: 'या तो तिरंगे को लहराकर आऊंगा, या फिर तिरंगे में लिपटकर'... ये शब्द थे देश के वीर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा के। जिन्होंने कारगिल वॉर के दौरान कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। ये ही वो शेरशाह था जिसके मुंह से ये दिल मांगे मोर सुनकर ही दुश्मन समझ जाया करते थे कि ये शांत बैठने वाला नहीं है। कैप्टन विक्रम बत्रा से पाकिस्तानी खाते थे खौफ...

 

 

कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा
विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था,  1996 में विक्रम ने इंडियन मिलिटरी अकादमी में दाखिला लिया। 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर विक्रम की ज्वाइनिंग हुई। 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को करगिल युद्ध में भेजा गया. हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया. इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया. बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। 5140 चोटी पर खड़े होकर कहा था ‘ये दिल मांगे मोर’। 


 

गोली लगने के बाद भी लड़ते रहे विक्रम 

चोटी 5140 के बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया. इसकी बागडोर भी कैप्टन विक्रम को ही सौंपी गई. जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ कैप्टन बत्रा ने 8 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा. मिशन करीब-करीब पूरा होने को था लेकिन तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए. कैप्टन बत्रा नवीन को बचाने के लिए पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ये शेर शहीद हो गया। 

 

 


पाकिस्तानी शेरशाह के नाम से जानते हैं 
विक्रम बत्रा की के हौसले और कद-काठी को देखते हुए उन्हें कोड नाम शेरशाह दिया गया था. विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा बताते हैं कि आज भी पाकिस्तान में विक्रम बत्रा को शेरशाह के नाम से याद किया जाता है।

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